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सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चेताया 27 अप्रैल को होने वाले धर्म संसद में हिंसा भड़काने वाले भाषण हुए तो जिम्मेदार होंगे उच्च अधिकारी पत्रकार कुर्बान अली ने डाली थ याचिका

12 जनवरी को कोर्ट ने हरिद्वार और दिल्ली में हुए धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषणों के मामले पर नोटिस जारी किया था. यह नोटिस पत्रकार कुर्बान अली की याचिका पर जारी हुआ था. 27अप्रैल को उत्तराखंड के रुड़की में होने जा रहे धर्म संसद के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को चेताया है. कोर्ट ने कहा है कि हिंसा उकसाने वाले भाषण पर लगाम नहीं लगाई गई, तो उच्च अधिकारियों को जवाबदेह माना जाएगा. कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को हलफनामा दाखिल करने को कहा कि कार्यक्रम में कुछ भी गलत होने से रोकने के लिए सभी कदम उठाए गए हैं.
हिमाचल प्रदेश के ऊना में 17 से 19 अप्रैल को हुई धर्म संसद पर भी सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिकाकर्ता कुर्बान अली के वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि प्रशासन ने भड़काऊ भाषण रोकने के लिए ज़रूरी कदम नहीं उठाए, जबकि उसे कार्यक्रम की पहले से जानकारी थी. कोर्ट ने हिमाचल सरकार से पूछा है कि इस तरह के मामलों पर पहले आ चुके निर्देशों के पालन के लिए उसने क्या कदम उठाए. कोर्ट ने यह भी पूछा है कि कार्यक्रम के बाद उसने क्या कार्रवाई की है?
क्या है मामला?
12 जनवरी को कोर्ट ने हरिद्वार और दिल्ली में हुए धर्म संसद में दिए गए भड़काऊ भाषणों के मामले पर नोटिस जारी किया था. यह नोटिस पत्रकार कुर्बान अली की याचिका पर जारी हुआ था. याचिकाकर्ता ने 17 दिसंबर को हरिद्वार में हुई धर्म संसद और 19 दिसंबर को दिल्ली में हुए एक और कार्यक्रम की जानकारी दी थी.
यह बताया था कि दोनों कार्यक्रमों में जिस तरह के भाषण दिए गए, वह आईपीसी की कई धाराओं के खिलाफ थे. इनमें वक्ताओं ने खुलकर मुस्लिम समुदाय के संहार की बातें कहीं. लेकिन पुलिस ने अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की है.
मामले में सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के बाद उत्तराखंड पुलिस ने सख्ती दिखाते हुए यति नरसिंहानंद समेत कई लोगों की गिरफ्तारी की थी. दिल्ली पुलिस ने यह हलफनामा दाखिल किया था कि उसके अधिकार क्षेत्र में जो कार्यक्रम हुआ था, उसमें नफरत फैलाने वाला कोई भाषण नहीं हुआ था. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से दोबारा हलफनामा दाखिल करने को कहा है. मामले पर 9 मई को सुनवाई होगी. ऊना और रुड़की का मामला भी उसी के साथ सुना जाएगा.
2018 में जारी हुए थे निर्देश
सुप्रीम कोर्ट जिन निर्देशों के पालन का सवाल उठा रहा है उन्हें 17 जुलाई 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने जारी किया था. भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए यह निर्देश तहसीन पूनावाला की याचिका पर जारी किए गए थे.
कोर्ट ने कहा था कि हर जिले में एसपी रैंक अधिकारी का ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए नोडल ऑफिसर बनाया जाए. ऐसे इलाकों और लोगों की पहचान हो जहां/जिनसे हिंसा की आशंका है. ऐसी जगहों और लोगों पर खास चौकसी बरती जाए. ज़रूरत पड़ने पर तुरंत भीड़ को खदेड़ा जाए.
सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज/वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाएं. ऐसे मैसेज फैलाने वालों पर IPC की धारा 153 A (समाज में वैमनस्य फैलाना) के तहत केस दर्ज हो. भीड़ की हिंसा से जुड़े मुकदमों की फ़ास्ट ट्रैक सुनवाई हो और उनका 6 महीने में निपटारा हो.

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